जानिए..
तम्बाखू, खाना महापाप कैसे ! आईये जानते है।
एक राजा का साडू भगत [ऋषि ] था। एक दिन राजा ने अपने साडू के घर नियोता भेजा खाने का ।
ऋषि की पत्नी ने कहा कि सुनो जी मेरी बहन के घर से नियोता आया है भोजन पर जाना है। साधु बोला कि रहने दे भाग्यवान हम कहां और वो कहां । उसकी पत्नी नही मानी और राजा के घर भोजन कर अपनी कुटिया में दोनों लोट रहे थे तब उस ऋषि की पत्नी बोली सुनो जी हमें भी उनको भोजन के लिए बुलाना चाहिए। ऋषि बोला ठीक है मैं व्यवस्था करता हूँ। ऋषि के पास अपनी भक्तिधन के अलावा और कुछ नही था। वह अपने पुण्यो से स्वर्ग से कामधेनु गाय ले आया। और बड़ा सा टेन्ट लागा लिया ,आस पास के ऋषि भी बुला लिए। राजा ने ऋषि को नीचा दिखने के लिए सैकड़ो सैनिक साथ ले लिये और ऋषि के घर भोजन पर चला गया साधु ने अपनी सिद्धि से सारी तैयारी कर ली टेन्ट ,बैठने स्थान पर बढ़िया बिस्तर बिछा कर ,आदर सत्कार कर सभी को भोजन करने के लिए आग्रह किया जब राजा ने देखा कि बढ़िया -२ पकवान जैसे मैने इस साधु को कराये थे। उससे भी अधिक और स्वादिष्ठ भोजन करा रहा है वो कामधेनु के सामने जाता और प्रार्थना करता और भोजन ले आता । राजा को आश्चर्य हुआ कि ये घास फुस खाने वाला इतना स्वादिस्ट भोजन कहां से ला रहा है। भोजन करने के बाद उसने ऋषि से पूछा कि तुम ये भोजन कैसे करा पा रहे हो। ऋषि बोला - राजन मैं अपने पुण्यो की कमाई देकर स्वर्ग से कामधेनु गाय लाया हूँ। उनके सामने प्रार्थना करने से वह मुझे ये भोजन व्यवस्था दे रही है आप की सारी सेना तो क्या सारी पृथ्वी को भी भोजन कराया जा सकता है। तो राजा ने अपने सैनिकों से कहा इस गाय को छिन लो और ले चलो । ये कंगाल क्या करेगा अपने काम आयेगी। यह सुन ऋषि ने कामधेनु गाय से हाथ जोड़ कर कहा कि हे माता , आप वापस स्वर्ग चली जाईये मेरे काबू से बात बाहर हो गयी है,तब कामधेनु टेन्ट को चीरती हुई आकाश में उड़ चली राजा ने उसे रोकने के लिए तीर चलाया जो जाकर सीधे गाय के खुर में लगा और खुर में से जो रक्त जहां जहां गिरा वहां ये बीमारी [तम्बाखू] पैदा हो गयी।
फारसी में कहते है [ तमा,मतलब =गाय ,
खु ,मतलब =खून]
कसम है १०० बार आपको , अगर आप हिन्दू है और गाय को माँ मानते है तो इसे ना खाये ।
हमें अभी तक ये ज्ञान नही था अब हो गया है। तो अब इस जहर को ना खाए और न हीं खिलाये।तम्बाखू की एक ऐसी सच्चाई जिसे जानकार आप कभी भी सेवन नहीं करेंगे और ना किसी को करने देंगे।
हरिजन को सोहावै नहीं, हुक्का हाथ के माहि ।
कहें कबीर रामजन, हुक्का पीवें नाहिं ॥
भांग तमाखू छूतरा, जन कबीर से खाहिं ।
जोग मन जप तप किये, सबे रसातल जाहि ॥
अर्थ- भांग,तम्बाकू,धतूरा खाने वाले सभी नरक में जाएंगे । चाहे वह कितनी ही भक्ति करता हो । सात प्रकार के नर्क है। अतल,वितल,सुतल,तलातल,महातल,पाताल,रसातल ।।
जो तम्बाकू पीते हैं वो पिछले जन्म के सूअर है।
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गरीब, हुक्का हरदम पिवते, लाल मिलावैं धूर।
इसमें संशय है नहीं, जन्म पिछले सूर।।1।।
गरीब, सो नारी जारी करै, सुरा पान सौ बार।
एक चिलम हुक्का भरै, डुबै काली धार।।2।।
गरीब, सूर गऊ कुं खात है, भक्ति बिहुनें राड।
भांग तम्बाखू खा गए, सो चाबत हैं हाड।।3।।
गरीब, भांग तम्बाखू पीव हीं, सुरा पान सैं हेत।
गौस्त मट्टी खाय कर, जंगली बनें प्रेत।।4।।
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